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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
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<poem>
दुविधा पर जीवन है मस्ती पर चाँदनी।
दामन भर अँधियारा मुट्ठी भर चाँदनी।

आना जब उसको था मेरे ही दामन तक,
फिर कैसे भटक गयी पास आकर चाँदनी।

कब आये, कब जाये किसको मालूम है,
धोखा भी दे जाती है अक्सर चाँदनी।

सपने था पाल रहा मन में यह बरसों से,
मुझ से भी तो बोले दो आखर चाँदनी।

उसमें वो रंगत है, रंगत में जादू है,
प्राणों को मेरे कर देती तर चाँदनी।

</poem>
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