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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
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<poem>
बात को साफ कहो, सीधे कहो।
वो भले तेज, भले धीमे कहो।

जो सही है वो कहीं व्यक्त करो,
सामने मॅुह पे कहो, पीछे कहो।

बात ही क्या वो जो असर न करे,
रुख बदल के वही अब तीखे कहो।

बात मंदिर की हो कि मस्जिद की,
जो ज़रूरी वो ज़हर पी के कहो।

जिक्र सतयुग का न छेड़ो असमय,
जी रहे युग जो वही जी के कहो।
</poem>
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