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<poem>
गाँवों का उत्थान देखकर आया हूँहूँ।
मुखिया का दालान देखकर आया हूँ।
मनरेगा की कहाँ मजूरी चली गई,
सुखिया को हैरान देखकर आया हूँ।
कागज़ पर पूरा पानी है नहरों में,
सूख गया जो धान देखकर आया हूँ।
कल तक टूटी छान न थी अब पक्का है,
नया-नया परधान देखकर आया हूँ।
लछमिनिया थी चुनी गयी परधान मगर,
उसका ‘पती-प्रधान’ देखकर आया हूँ।
बंगले के अन्दर में जाने क्या होगा,
अभी तो केवल लॉन देखकर आया हूँ।
रोज सदन में गाँव पे चर्चा होती है,
‘मेरा देश महान’ देखकर आया हूँ।
</poem>
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