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15:42, 20 अगस्त 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
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<poem>
कहाँ जाबो रे संगी,
कहाँ जाबो रे।
हमर गाँव के मांटी,
सोना उगले रे।
खेत-खार ला हमन सजाबो,
रुक-राई चल सबो लगाबो।
जुर-मिल संगी ऐ भूईयाँ ला,
हरा-भरा अब हमन बनाबो।
नवां राज के नवां बिहिनियाँ।
अब होगे रे।
गाँव-गाँव पंचायती राज हे,
काम-बुता अब मिलगे।
झन जाबे तें धुरिहा रे संगी,
भाग हमर संवर गे।
नई होये अन्याय हमर संग।
तें चिंता झन करबे रे।
</poem>
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