{{KKCatGhazal}}
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जिंदगी की मुसीबत हटा लीजिए।लीजिए
अब मुहब्बत का सामां उठा लीजिए।
अब तो अक्सर सुनामी के चर्चे सुनूँ,
आँसुओं का समन्दर बचा लीजिए।
बेख़बर इक भटकता हुआ मैं हिरन,
तीर जब चाहिए तब चला लीजिए।
ख़ूँ में बेशक़ हमारे है जन्मी ग़ज़ल,
अपनी स्याही में इसको मिला लीजिए।
रंग उतरे न जो हो पुरानी कभी,
कोई तस्वीर ऐसी बना लीजिए।
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