Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
तुम खुश रहो, हम खुश रहें अपनी जगह-अपनी जगह।जगह
तुम भी जियो, हम भी जियें अपनी जगह-अपनी जगह।
यह नीर सच, वह पीर सच, यह रात सच, वह प्रात सच,
मन को रखें, तन को रखें अपनी जगह-अपनी जगह।
तुम भी सही, हम भी सही, जो है नियम वह भी सही,
तुम भी सहो, हम भी सहें अपनी जगह-अपनी जगह।
मजबूर तुम, मजबूर हम, मजबूरियों से क्या गिला,
शबनम गिरे, शोले बुझें अपनी जगह-अपनी जगह।
इस बर्फ़ में, उस आग में कुछ बात है जो एक है,
जब तक जियें उगलें धुयें अपनी जगह-अपनी जगह।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits