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दग़ाबाजों से धोखा और खाना क्या ज़रूरी है।है
उसी के साथ तस्वीरें खिंचाना क्या ज़रूरी है।
इलेक्शन आ रहा है फिर नये चेहरे दिखेंगे कुछ,
पुराने पोस्टर से घर सजाना क्या ज़रूरी है।
कहीं ऐसा न हो बस हाथ में डोरी बचे केवल,
पतंग को ओर भी ऊँचा उड़ाना क्या ज़रूरी है।
उसे पहले भी परखा है कभी झूठा नहीं निकला,
तो बारम्बार उसको आजमाना क्या ज़रूरी है।
तुम्हारा प्यार सच्चा है भरोसा है अगर खुद पर,
बताओं फिर तुम्हें सौगन्ध खाना क्या ज़रूरी है।
</poem>
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