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सीपियों के नाम में सारा समंदर लिख गया।गया
ग़म मेरा वो शायरी अपनी बनाकर लिख गया।
उस मुसव्विर को ज़रूरत है कहाँ किस रंग की,
मौसमों के रंग जो पत्तों के ऊपर लिख गया।
मैंने क़िस्मत की ज़मीं पर हल चलाया रात -दिन,
कुछ न जब पनपा तो वो मेरा मुक़द्दर लिख गया।
वो अगर शायर नही तो फिर बताओं कौन है,
उम्र भर का दर्द जो पल भर में हँसकर लिख गया।
</poem>
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