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हमने दिल जो दिया तो दिया कोई क़ीमत नहीं माँगते।माँगते
बस बराबर मुलाका़त होती रहे हम मुहब्बत नहीं माँगते।
आग कोई बुझाने में जो हाथ मेरा तनिक जल गया,
अपने घर वालों से इस सबब हम नसीहत नहीं माँगते।
भाइयों की खुशी के लिए थेाड़ा संतोष जो कर लिया,
उसके बदले में उनकी तरफ़ से हम मुरौव्वत नहीं माँगते।
घन कमाने की कोशिश करें, ख़्याल इतना तो लेकिन रहे,
हाय जिसमें ग़रीबों की हो ऐसी दौलत नहीं माँगते।
वो हवाओं के झोंके थे जो छू के उसके लबों को गये,
ऐसी गुस्ताखियों के लिए वो इजाज़त नहीं माँगते।
</poem>
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