{{KKCatGhazal}}
<poem>
गुज़र जाते हैं जो लम्हे वो केवल याद आते हैं।हैं
नये जब यार बनते हैं, पुराने भूल जाते हैं।
यही होता रहा है और आगे भी यही होगा,
नये पत्ते निकलते हैं, पुराने सूख जाते हैं।
इसे बदकिस्मती मानें कि अपनी ख़ामियाँ समझें,
निकल जाता समय जब हाथ से तो छटपटाते हैं।
स्वयं को आदमी कितना चतुर, काबिल समझता है,
मुसीबत के बिना भगवान किसको याद आते हैं।
भले कितना बड़ा है वो मगर इन्सान ही तो है,
ख़ुदा के सामने केवल हम अपना सर झुकाते हैं।
</poem>