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05:45, 27 अगस्त 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
}}
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<poem>
दरवाजा खटखटाया
सन्नाटों का आदी घर चौंका अकबकाया
आहटों के पैर देखे
मुस्कुराया
कोई आया
रौशनी वाले कमरे में
अंधेरों की चमक ढूंढने
हाथ बढाकर हौले से छूना दीवारें
और चूम लेना सीलन
जख्मों के नाम एक साजिश थी
मोहब्बत की
कहां रुकते पैर
और कहां टिकती आहटें
घर ढोता है कितनी ही लाशें
देहरी गवाह है उन रक्तिम चिह्नों के
जिन्हें हल्दी वाले हाथों से लिपटना था
रास्ते बरसते हैं
आंखें पत्थर
टूटे छप्परों से रिसते हैं
घरों के किस्से
एक खासियत है यही
कि लाशों से कोई भभका नहीं उठता।
</poem>
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