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स्थिरता / अर्चना कुमारी

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|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
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<poem>
रात के ठीक तीसरे पहर
जब कोई याद हुमकती है
नींद के पेट में मरोड़ उठती है

आटे से चोकर की तरह
अलग नहीं की जा सकती
यादें मन से

चिरैते की छाल का लाभ
पीने वाला जानता है
खून को साफ कर
जीभ को तिक्त करती है
हरती है स्वाद

सलवटें जकड़ गयी हैं आत्मा पर
तन को लोहे की तरह तपाकर
सीधी करती है सिकुडऩ
ज़िन्दगी...

समय की तरह
गतिमान होकर भी
बीच के वर्ण म की तरह
स्थिर रहना होता है
पक्की नींद के कच्चे सपनों को।
</poem>
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