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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
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<poem>
जीवन के प्रथम
कटु- अनुभव के
छोर पर
निर्जन में खड़ी
रग -रग दुखाती
अबोध से
थोड़ी बड़ी
विचारधारा

कभी निज की
कभी परिवार की
कभी क्रूर दुनिया की
सेाच में
डूबती
डतराती
बढ़ती है आगे

मँगतों के
जीवन में
कैसा विराम?
</poem>
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