Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=इज़्ज़तपुरम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पंछी
कहीं बिचरें
उड़ें
दिन भर
सूरज के
ढलते ही
लौट आयें
नीड़ में

शिशुओं को
चोंच का
चारा चुगायें
बड़ा करें उन्हें
और फिर
उनसे मुक्त हो लें

किन्तु
इन्सान की दुनिया
विपरीत है

धर्मग्रन्थ
कहते हैं
मातृ - पितृ ऋण से
सन्तान
कभी मुक्त न हो
आजीवन ऋणी हो
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits