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|संग्रह=शहर छोड़ते हुए / रामनरेश पाठक
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<poem>
यह शहर
एक लम्बे अरसे से मेरा घर

जब छोड़ रहा हूँ तो
मैं उतना ही उदास हूँ जितना
नैहर छोडती हुई कोई लड़की
उदास हो जाती है

या कोई परदेशी गाँव छोड़ते हुए
अपनी उदासी के समंदर में डूब जाता है

या सोते-सूखने वाले झरने
या पति को विदा देने वाली कुलवधू
या फसल कटे खेत और सूनी चौपाल

बिजली के गुल हो जाने पर शहर
यज्ञ समाप्ति के बाद वेदी
तांत्रिक के न होने पर भैरवी
विसर्जन के बाद मूर्तिपीठ।
</poem>
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