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लहसन / रामनरेश पाठक

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|संग्रह=शहर छोड़ते हुए / रामनरेश पाठक
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<poem>
तुम्हारी कोमल मांसल बाँह पर
एक लहसन है
उसे चूमें
पलकों छुए
कई प्रकाश वर्ष बीत गए हैं
</poem>
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