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रंग भरी नदी / रामनरेश पाठक

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|संग्रह=शहर छोड़ते हुए / रामनरेश पाठक
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<poem>
मेरे चारों ओर गीत की जवान नदी बह रही है
सबेरे सबेरे मत जगाओ मुझे
तुम्हारे कुन्तलों से मधु की बूँदें टपक रही हैं
मेरे रक्त की ताँ पंचम पर है
देखो, मत उठाओ मुझे
फागुन आ गया है !
</poem>
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