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जरि गइल ख्वाब भाई जी / विजेन्द्र अनिल
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10:55, 13 सितम्बर 2017
चाहे हथकड़ी लगाईं, चाहे गोली से उड़ाईं
हम त पढ़ब अब ललकी किताब भाई जी
'''रचनाकाल : 23.8.1979'''
</poem>
अनिल जनविजय
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