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इज़्ज़तपुरम्-23 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
वासना के
ज्वलनशील
बारूद पर
बैठी बेचारी
एक नारी
अभिशप्त जीवन का
पर्याय बन गयी

पुरूषों के
दोहरे मापदण्डों
और नीतियों की
छली बेबस

बाहर से
रंगी-पुती
सजी-सँवरी
भीतर से
जर्जर और खोखली
यानी एक तरफ
मॉ-बहन-बेटी
आदर सूचक शब्द
तो दूसरी तरफ
अभद्र गालियाँ भी

इसीलिए
पराश्रिता
ढूँढती है
पुख्ता और सुनिश्चित
चहारदीवारी
</poem>
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