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इज़्ज़तपुरम्-53 / डी. एम. मिश्र
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<poem>
उमंग
उत्साह से
भरी अम्मीजान
सुबह से
सज-सँवर रही
अम्मीजान
जश्न की
तैयारी में जुटी
अम्मीजान
वेश्या का बेटा
जैसे भैंस का पड़वा
बहराइची खुश आज
जाँघिया-कमीज फटी
फेंक कर पहन लिया
पजामा-कुर्ता नया
मॅहगी मिठाइयाँ
डिब्बों में पैक
नथ उतराई की
गमकदार रस्म में
समग्र बिरादरी में
ब्याह जैसा उत्सव
डूब गया सूरज
सकपकायी
घबराई
गोधूलि
भीषण कालिख
प्रचण्ड झंझा के
हो गयी हवाले
शैतान
प्रथमरा़त्रि का
मुँहमाँगा रेट चुका
छीन लिया सुहागरात
अलफनंगी
दरक गयी
अस्मिता की दीवार
चूर-चूर हो गये
सदियों के बुने सपने
</poem>
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