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इज़्ज़तपुरम्-62 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
कोठे की मालकिन
तानाशाह अम्मीजान

कोठे की लौंडिया
जहरमोहरे के
जंगल में रास्ते का प्याऊ

स्वामिभक्ति की
पराकाष्ठा पर
दुम हिलाती है
कौरा के बल पर

चमड़ी है अपनी
दमड़ी नहीं

पेट में ईंधन
रिजर्व के ऊपर न उठे
कम खपत में गाड़ी
दूर तक चले
धुआँ फेंके / धमाके करे
धक्के पर चले
पर गेराज में न रुके
जब तक बाडी में
खड़खड़ाहट शेष है
</poem>
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