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इज़्ज़तपुरम्-65 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
बीस का चेहरा
देह की ज्यामिति
रूप का शिल्प
इतना खो चुका
कि बीस का नोट
कमाने में किल्लत हो

अम्मीजान
सड़ने से पहले
औने-पौने दाम पर
थोक में माल
निकालने में विश्वास करे

मगर उसकी छोटी बहन
जीबी रोड दिल्ली की
मैडम शकुन्तला
फन में प्रवीण/ नयी-नयी
पराधुनिक तकनीकों से लैस
माल से ज्यादा
भरोसा करे
अपने गुर पर

बीस हजार में
चीज सस्ती
आश्वस्त हो
कर लिया सौदा
गुलाबबाई का
</poem>
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