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20:22, 10 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार सौरभ
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}}
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<poem>
घोंसले दीये नहीं जलाते
कितना तो सुंदर है अमावस
गृहदाह से
यह हस्तक्षेप क्यों?
अप्रत्याशित रोशनी
रंगीनियाँ
शहर भर शोर
आँखें
सीमान्त के खाली गाँव
फेफड़े में भूकम्प
बेचारे, रात भर पंछी !
</poem>