तमतमाई माँ सवेरे से उकसा रही है बाबूजी को
'सबसे बुरलेल<ref>बेवकूफ़</ref> दीनानाथझंझटिया ज़मीन भी आप ही में ठेल दिया!'
हवा में पसर गई है
गरमा रहा है माहौल
फनककर बोल गए हैं बड़का कका-
'सब हम अरजे<ref>अर्जन करना</ref> हैंतुम लोग लेना बाप का..'
हम सभी पितिऔत<ref>चचेरे भाई</ref>