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09:35, 12 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निधि सक्सेना
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|संग्रह=
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<poem>
दिल मे मचल रही
कविता की मखमली बुनावट के बीच
कुकर की क्रूर सीटी का बजना
इश्क के मदहोश ख़्यालो के बीच
चाय और नाश्ते की गुहार लगना
शब्दों की बंधती लड़ियों के बीच
बिजली के बिल का बिजली सा गिरना
मासूम नाज़ुक भावों के बीच
दूध का उफन जाना
और अंततः
शब्दों का
इश्क़ का
भावों का
और कविता का
आटे में सन जाना
धत्त!! अब कुछ लिखने मूड नही.
</poem>
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