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हमारी सन्तति / निधि सक्सेना

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<poem>
हमने उन्हें महत्वाकांक्षाएं तो दीं
परंतु धैर्य छीन लिया
उनकी आंखों में ढेरों सपने तो बोये
पर नींदे छीन लीं
हमने उन्हें हर परीक्षा के लिए तैयार किया
परंतु परीक्षा के परे की हर खुशी छीन ली
हमने किताबी ज्ञान खूब उपलब्ध कराया
परंतु संवेदनायें छीन लीं
हमने उन्हें प्रतिद्वंदी बनाया
पर संतुष्टि छीन ली
हमने उन्हें तर्क करना सिखाया
परंतु आस्थायें छीन लीं
हमने उन्हें बार बार चेताया
और विश्वास छीना
हमने उन्हें उड़ना सिखाया
और पैरों के नीचे से जमीन छीन ली

सच !! हम सा लुटेरा अभिभावक पहले न हुआ होगा
</poem>
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