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|रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन
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<poem>
कई देवताओं के होते हैं
दो से अधिक हाथ
स्वभाविक है
कार्य कुशलता बढ़ जाती होगी
किन्तु एक से अधिक सर होना
नहीं समझ आता
एक ही देह को नियंत्रित करने के लिए
चार चार दिमाग !!
ज़रूर होती होगी उनमे भी
देह पर वर्चस्व के लिए जटिल होड़
कैसे तब
चुनती होगी बेचारी देह
उनमें
अपने लिए योग्य नायक
क्या देवताओं की देह
झेल पाती होगी
प्रजातंत्र की विडम्बना ?
</poem>
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