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<poem>
आओ
आयातित शराब पीकर
मुर्गे की टांग चबाते हुए
पता लगाएं, साइंस के कानून.

जब आँखों पर सुरूर छा उठेगा
कहीं कोई नहीं दिखेगा
न पाइप में मार खाती औरत.
न नाली में खेलते बच्चे.

अगर फिर भी
डकारों के बीच
भीख माँगती लड़की,
सूखे हुए छुहारे सा
बच्चा गोद लिए लड़की,
दिख ही जाए तो
चवन्नी थमा देना.

डिस्टर्ब करना बंद
कर देंगी उसकी निगाहें.
और तुम आज़ाद हो जाओगे
चमकती पोशाकों में लिपटी
औरतों को निहारने के लिए
और नाभिक के गुण धर्म
दुनिया को बताने के लिए.

(रचनाकाल - १७.२.१९८८)
</poem>
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