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<poem>
इनकी आंखों में देखते हुए लगता है
ये बस इस शहर में रुके हुए
वो पुराने लोग हैं
जो कभी नहीं छोड़ना चाहते थे दिल्ली,
ये बस रुकना चाहते थे यहीं दिल्ली में !
इनकी चंचलता में जो शांति है
इनके यात्रा की समाप्ति की कहानी बताती हैं
शायद ये वो लोग रहे होगें
जिन्होनें कुछ नहीं चाहा होगा दिल्ली के सिवा,
कुछ कारीगर होगें
कुछ किसान होगें
कुछ कवि, लेखक, शायर होगें
कुछ व्यापारी होगें
कुछ राजा कुछ रानियां
कुछ रहें होगें क्रांतिकारी
कुछ विजेता होगें
कुछ हारे हुए लोग होगें !
ये कबूतर ये गिलहरियां कुछ नहीं कहते
पर लिखना तो चाहते ही होगें अपनी कहानियां !
</poem>
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