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14:25, 16 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= एल्सा ग्रावे
|संग्रह=
}}
<Poem>
अब क्यूँ नहीं बोलते हैं घर
गाती नहीं सड़कें अब?
कुछ है नहीं अब कहने के लिए
गाने के लिए?
रात के दमघोंटू मौन कदम,
एक कंपकंपी है बनी हुई.
मूक मुड़ती है यंत्रणा झेलती, कुचली सड़क
आसपास हर कोने से.
मैं जा रही हूँ एक पीड़ादायक
और दिन भर की थकी हारी सड़क से,
जब मैं जाना बंद करूंगी,
खोलूंगी मैं एक सख़्त द्वार
एक मौन आवास में.
वहाँ रहूंगी मैं
रात के साथ अकेले.
'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
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