Changes

<poem>
धर्म की चादर तान रे बन्दे धर्म की चादर तान
रहे, रहे ना चाहे पगले तू कोई इंसान इनसान रे बन्दे...
योगी-भोगी, बाबा-साबा, संतसन्त-वंत वन्त बन जा रे
टाट-वाट का चक्कर कर के ठाठ-बाट से खा रे
भगवा जीवन करता जा तू धन को अन्तर्धान रे...
कर्म किए जा सब धर्मों का है भक्तों से कहना
सब के हिस्से का फल आख़िर तेरे पास ही रहना
फल खा पेट पे हाथ फिरा और चंदन चन्दन मुँह पे सान रे...
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,410
edits