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03:39, 17 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=टोमास ट्रान्सटोमर
|संग्रह=
}}
<Poem>
आती रहती हैं अंत्येष्टियाँ
अधिकाधिक संख्या में
जैसे बढ़ती जाती है संख्या यातायात संकेतों की
ज्यों-ज्यों हम करीब पहुँचते जाते हैं किसी शहर के.
टकटकी लगाए हुए हजारों लोग
लम्बी परछाइयों के देश में.
धीरे-धीरे
एक पुल निर्माण करता है स्वयं का
सीधा अन्तरिक्ष में.
'''(अनुवाद : मनोज पटेल)'''
</poem>
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