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देह की देहरी पर / सुरेश चंद्रा

2 bytes added, 07:30, 20 अक्टूबर 2017
आहत दर्प
जा छुपता है
प्रशस्ति की कन्दराओं मेमें
तेक नहीं छोड़ती हठ
निर्वसन करता हुआ
शिराओं से मुख तक
रक्त के सारे माध्यम !!.
</poem>
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