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हम अपने में इतने स्पष्ट थे
कि मौन थे.
हमारी कविताएं कविताएँ हमारे पूर्व की स्मृतियाँ थीं.
यह मैंने भीम बैठका की गुफाओं में
सब कुछ सुनने की लालसा में
धीरे-धीरे फैल रहा था.
वहीं कुछ स्पष्ट आवाज़े आवाज़ें भी थीं.
पीले शिखरों से टकराकर मुझ तक लौट आ रही थीं.
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