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19:18, 20 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन
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<poem>
वह
जिस चित्र को नहीं बना पाया
अबतक
खोजता है
उसके नक्श
रेखाएं उसके इर्द-गिर्द
उसके रंग
मैं जब पूछता हूँ उस से
कहो
कैसा चेहरा है वह
वह डूबने लगता है
जमे हुए शब्दों की नदी में
हाथ पैर मारता वह छटपटाता है बस
कुछ कह नहीं पाता
अपनी अजन्मी कृति को
अपने ही शब्दों की हिंसा से
बचाते हुए
कोरे निष्पाप शब्दों की तलाश में
ज़ुबान में गांठें लिए फिरता
वह एक अलग तरह का कवि है.
</poem>
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