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10:33, 21 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं अथर्व हूँ / रामनरेश पाठक
}}
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<poem>
सदियाँ कुटुंब में जीती हैं
अब्दों का संगीत
अंतरित होता रहता है
संस्कृति है
और नहीं
परंपरा नहीं है
और है
प्रयोग छंदग है
प्रकलक है
अंतिम परिणति की ओर
</poem>
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