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14:16, 22 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं अथर्व हूँ / रामनरेश पाठक
}}
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<poem>
शब्द इतिहास की
भीड़, गमक, मूर्च्छना में
प्रसरित होते हैं
जंगल, नदी, पहाड़, परिवेश और संस्कृति को
रोमांच होता है
ठूँठ और वीरान का
एक नन्ही दूब
एक सदी-हवा मुस्कुराकर
सूरज को टेस करती है
</poem>