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सुनो प्रियतमआकर तो देखो मेरे प्राणपतिमेरी आँखों का बरसना देख करसावन ने बरसना छोड़ दिया आज कितनी भयावह लगती हैपहाड़ की हँसीयही कारण है किनहीं बरसते हैं अबसावन के ये मेघ।सूखा ही रहता आकाश हो गया है यह पूरा सावनसुरसा का मुँहऔर यह जो कभी-कभीचाँद छिप जाता है मेघ सेजानते इंजोरिया, जिसके हो प्रियतमदाँतयह क्या है ?यह मेरी आँखों नदी के बहते काजल हैंदोनों किनारेऔर मेरे ही बिखरे केशजैसे, इसकी दो बाँहेअगर मेघ होतेलगते हैंतो बरसते नहीं ?लाचारीतुम्हें क्या मालूम मेरे प्रियतमघर में सबके सो जाने परडरती-छिपती ओहार और कोन्टा से होतीसबकी आँखों से अपने को बचातीगाँव से कोस भर चल सब मिल करइतनी दूर यहाँ आई हूँ मैं।किसके लिए आई हूँतुम्हारे लिए ही न ! कि मेरे आते ही तुम बज उठोगेबाँसवन की सिसकारी की तरहऔर मुझे देखते ही दौड़ पड़ोगेखा जायेंगे।दोनों हाथ फैलाए, समेट लोगे मुझेअपनी दोनों बाँहों में हमेशा-हमेशा के लिए। मगर यह सबवहीकुछ भी न हुआगहराइयों और ऊँचाईयों वालासूखे ही रह गये अधर,प्यासा ही रहा मन। मेरी इच्छाओं पर पानी फेरने वाले मेरे मीतआज यह विश्वास क्यों दम तोड़ रहा जेठोर का पहाड़ है किप्रत्येक महीना की पूर्णिमा की रात में हम दोनोंरात्रि की सुनसान खाली बेला मेंइसी पीपल वृक्ष के नीचेएक-दो सालों से नहींजाने कितने ही सालों सेक्षण-क्षण मिलते रहे हैं। क्या हुआ जो तुम्हारे कहने साथ रहने पर भीअपने पंख पसारस्त्री होने की लाचारी के कारण हीहाँ, कहने के बाद भी न आ सकीप्रियतम, क्या तुम नहीं जानते होनारी का पूरा जीवन हीमर्द के हाथों में गिरवी रखा होता हैकौमार्य में पिता, ब्याहने उन पर पुरुषबुढ़ापे में पुत्रआखिर परम्परा के इस बन्धन को कैसे तोड़ पाती ? अगर यह हिम्मत मैं क्षण में ही नहीं जुटा पाईतो इसी में मेरे प्यार !तुमने चढ़ा घुमाता था मुझे झुट्टी कैसे मान लिया।हाँ, मैं नही आ पाई लेकिन तुम भी तोकितने ही दिन इसी तरहकहकर भी नहीं आये होतो क्या हो गया अगर और आज मैं ही न आ सकी।कि बस इतनी-सी बात के लिएतुम रूठ गये हो । तो आओ दण्ड दो मुझकोमैं तुम्हारी सारी मनमानियाँ मानने उसी पहाड़ को तैयार हूँ।लगता है लेकिन इस तरह मुझको न सताओन तड़पाओरिसहजारों-रिस कर मारो नहीहजार हाथ निकल आये हैंमुझको रुलाओ नही ।प्रेमोन्मादयह मैं मानती हूँ किप्रेम घना होने पर ऐसा ही होता है,व्यक्ति ज्यादा मान चाहता हैलेकिन यह तो कहो प्रियेक्या यह चाह, यह तड़प, यह बदहालीतुमसे मुझमें कम है ? तब इस तरह सेमेरी परीक्षा लेने का क्या अर्थ ? लेकिन, तब भी तुम्हारी हीसचमुच में तुम्हारी ही बात रखने के लिएमैं एक अकेली लड़कीरात की इस सुनसान निर्जन बेला मेंचन्दन नदी पार करडर, लाज और भय को कांेची में समेट करइस पीपल वृक्ष के समीप आ गई हूँ क्या कहूँ प्रियतमनदी किनारे के कोस भर फैले बालूसभी बाँसउसी तरह उमताई मैं पार कर गईजैसे हिरण अपनी कस्तूरी गंध से मतायीबाघ के आगे से निकल जाए। मैं अपना हाल क्या सुनाऊँ प्रियतमचन्दन नदी के कछार पर पैर को रखते हीलगा कि तुम बीच नदी उसके हाथों मेंपहले बन गये हैं भालों की तरह खड़े हो मेरी प्रतीक्षा में। तेज चलतीएक, दो, तीन डेगों से हीजब उस जगह पहुँचीतो हाहाकार कर उठे मेरे प्राणपूरी देह एकबारगी ही सिहर गईऐसा लगा कि पूस की रात हवाओं में किसी नेकरचियाँबर्फीले पानी में धकेल दिया हो। लेकिन, कहीं कुछ नहीं थातुम तो खैर नहीं ही थे प्रियतमपानी पर बस एक चांद थाऔर थी उसकी चांदनीजो और कुछ भी नहींमेरे ही गुमसुम उदास आँसू से भीगेमुँह नागों की छाया भर थी।तरह फुंफकारती हैं मन करता थाउसी जगह से लौट आऊँलेकिन लाचारमन ही क्या करताजब पाँव ही नहीं मुड़ेनहीं लौट सकी मैंनहीं लौट पाई तुमसे मिलने की आकांक्षानहीं चाहते हुए भीफिर-फिर घेर लेती लगता है मुझेतुम्हीं कहो प्रियतमफनवाले हजारों नाग के भाले लिएप्रेम से वशीभूत डूबा मनकिसका-किसकाकब-कब लौट सका पहाड़ दौड़े चला आ रहा हैऔर कौन-कौन लौट पाया हैप्रेम के ऐसे मदमाते क्षणों में ? मुझे लगामेरी ही तरह उमताईयह नदी भी बहती रही हैसमय की छाती पर दौड़तीधरती पर पसरती बिना थकेअपने पिया से लिपटने को व्याकुल। साहस बांध कर एकबार फिरआगे देखा और अबके ऐसा लगाकि तुम पीपलवृक्ष की फेड़ी से सटेखड़े हो मेरी आशा मेंतुम्हारी उजली दकदक धोतीसावन की हवा से अठखेली करतीतुम्हारी मखमली कुर्त्तालम्बे बिखरे केशमन मोहने वाली तुम्हारी हँसीपगला देने वाली तुम्हारी छुवननहीं जानतीऔर कितनी-कितनी यादें आ गईकि नाँच गई मेरी आँखों मेंदौड़ कर अपनी बाँहों में मुझे उठा लेनाऔर बाँहों में ही करते मेरा वह परिरंभन कैसे भूल जाऊँ वह रस-रागगालों पर कटे दाँतों के दाग सिहर उठी है यह देहप्रियतमखोजती हूँ फिर से तुम्हारा वही नेह। क्या कहूँ मीत-उस समय मैं कितनी शर्माईजब नदी पार करनेठेहुना तक उठाई थी साड़ीतब सच कहती हूँ मेरे प्राणधार में एक चरण धरते हीघुटने भरपानी में डूबा चाँदठठा कर हँस पड़ा।जैसे कह रहा होसुनो साँवरी,कहाँ चली जा रही हो उमताई हुईकिससे मिलने को ऐसी पगलाई हुईकैसा जहान है ?हाँ, किसको त्राण है ! जाओ, जाओअवश्य ही जाओमुझे भी वहीं जाना हैजहाँ जा रही हो तुम !असमंजसअब तुम्हीं बताओ मीतमेरे प्राणों के प्राणकौन मुँह लेकरउसी राह से होकरनिराश लौट कर जाऊँगी मैंपूछेगा तो क्या बताऊँगी मैं ?निराशा से भरेमेरे मलीन चेहरे को देख करक्या सोचेगा वहकैसे, क्या उत्तर दूँगी मैंकिस तरह पार उतरूँगी मैं ? किस तहर कह पाऊँगीचाहती हूँकि जिसके लिए मरती-हफसतीदुल्हन-सी सजी आई थीवही मेरा मीत नहीं आया। किसे कहूँ अपना यह दुखआकाश उलट जाए और मैंकिसको सुनाऊँ अपने मन की बात कौन सुनेगा,कौन पूछेगाकिसको फुर्सत हैहाँ सखी, चन्दन तो पूछेगी जरूरऐसे इसकी गहराई में तुम्हीं आकर बताओ मेरे प्रियतममैं उसे क्या कहूँ ?डूब कर मर जाऊँ।
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