|संग्रह = तुम्हे सौंपता हूँ / त्रिलोचन
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फ़ेरु अमरेथू रहता है<br>वह कहार है<br><br>
काकवर्ण है<br>सृष्टि वृक्ष का <br>एक पर्ण है<br><br>
मन का मौजी<br>और निरंकुश<br>राग रंग में ही रहता है<br><br>
उसकी सारी आकान्क्षाएं - अभिलाषाएं<br>बहिर्मुखी हैं<br>इसलिए तो<br>कुछ दिन बीते<br>अपनी ही ठकुराइन को ले<br>वह कलकत्ते चला गया था<br>जब से लौटा है<br>उदास ही अब रहता है। <br><br>
ठकुराइन तो बरस बिताकर<br>वापस आई<br>कहा उन्होंने मैंने काशीवास किया है<br>काशी बड़ी भली नगरी है<br>वहां पवित्र लोग रहते हैं<br><br>
फेरू भी सुनता रहता है।