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अपनी आवाज़ की मखमल से
और
तीन गज सूर्यास्‍त सूर्यास्त से पीली जैकेट ।
टहलूँगा मैं
डान जुआँ और छैले की तरह
विश्‍व विश्व के चमकीले नेव्‍स्‍की नेव्स्की चौराहे पर ।
अमन में औरता गई पृथ्‍वी चिल्‍लाती पृथ्वी चिल्लाती रहे :"तुम जा रहे हो हरी बहारों से बलात्‍कार बलात्कार करने ।"निर्लज्‍ज निर्लज्ज हों, दाँत दिखाते हुए कहूँगा सूर्य को :"देख, मज़ा आता है मुझे सड़को पर मटरगश्‍ती मटरगश्ती करने में ।"
आकाश का रंग इसीलिए तो नीला नहीं है क्‍याक्याकि उत्‍सव उत्सव जैसी इस स्‍वच्‍छता स्वच्छता मेंयह पृथ्‍वी पृथ्वी बनी है मेरे प्रेमिका,लो, भेंट करता हूँ तुम्‍हें तुम्हें कठपुतलियों-सी हँसमुख
और टूथब्रश की तरह तीखी और अनिवार्य कविताएँ !
ओ मेरे माँस से प्‍यार प्यार करती औरतो,
मेरी बहनों की तरह मुझे देखती लड़कियो,
बौछार करो मुझ कवि पर मुस्‍कानों मुस्कानों की,
चिपकाऊँगा मैं
फूलों की तरह अपनी जैकेट पर उन्‍हें ।उन्हें। '''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
</poem>
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