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भावना / राजीव रंजन

No change in size, 04:29, 11 नवम्बर 2017
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निश्कपट निष्कपट हृदय का पट खोल,
भावना मेरी निकल बाहर
तुमसे जा लिपट गयी।
प्यार का स्पर्श पा तेरा
छुई-मुई सा वह सिमट गयी।
वर्शों वर्षों से जमीं थी जो हृदय
पर, ताप का एक एहसास
पा पल में पिघल गयी।
के दुर्वा-दल पर, वह
शबनमी बूँद बन बिखर गयी।
निश्कपट निष्कपट हृदय का पट खोल
भावना मेरी निकल बाहर
तुमसे जा लिपट गयी।
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