970 bytes added,
10:09, 20 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जड़ से उखड़ गए बहुत से पेड़
इस प्रभंजन में
अपने रूप-रस-गंध पर मुग्ध
जो थे इठलाते-झूमते
धराशायी हो गये वे
बचे केवल वही
जिनके मूलांकुरों ने रात-दिन जागकर
धरती की अंधेरी परतों में घुसकर
किया था अथक संघर्ष।
उन श्रमसाधकों को तो
यह भी नहीं पता कि किस तरह
आते हैं
दिन-रात-ऋतुएं-मौसम।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader