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10:37, 20 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
जो हमें जिलाती है
जलाती है वही हमको।
जो इस्पाती ढांचे
जलने से कर देते इंकार
उनको कर देती भुरभुरा
जंग की मार से
ऐसी प्रखर है इसकी धार।
सूर्य-किरणों से अधिक उद्दीपक
ऑक्सीजन से अधिक क्रियाषील
है यह हमारी ही रची हुई
जो हमें भरती हैं
वही हमें आखिर
खोखला करती है।
</poem>
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