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10:38, 20 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
एक दिन
सूख जाता पानी
आग ठंडी पड़ जाती
हवा तो ठहरती ही क्या
कब की उड़ जाती कहां-कहां!
अन्ततः बची रहती धरती।
अमर हो जाती हैं वस्तुएं
धरती में डूब कर
धरती होकर।
</poem>
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