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13:56, 21 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजीव भरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
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प्यास का कोई यहाँ हल नहीं होने वाला
सहरा सहरा है ये बादल नहीं होने वाला
सायबाँ होंगे कई मेरे सफ़र में लेकिन
कोई साया तिरा आँचल नहीं होने वाला
सब बदल जाएगा लेकिन जो खरा सोना है
वक़्त के साथ वो पीतल नहीं होने वाला
इश्क़ के दावे मुहब्बत की नुमाइश होगी
कैस जैसा कोई पागल नहीं होने वाला
मुझको आँखों में बसाने की ये ज़िद छोड़ भी दे
एक काँटा हूँ मैं काजल नहीं होने वाला
मुझको चौखट की और इक छत की ज़रुरत है बहुत
घर मेरा वरना मुकम्मल नहीं होने वाला
आँख भर देख लो दुनिया के मनाज़िर कि यहाँ
आज दिखता है जो वो कल नहीं होने वाला
</poem>