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{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
यह मेरी व्याकुल आत्मा का संगीत है
सच-झूठ से परे
प्राणों से निचुड़ती भाषा।
इसे झूठ मानोगे तो भटक जाओगे
सच समझोगे तो बहक जाओगे
पर क्या करे कोई ?
बहकने और भटकने के सिवा
और है भी क्या
जीवन में!
</poem>
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