{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}{{Template:KKAnthologyDiwaliKKCatKavita}}<poem>मुझे न अपने से कुछ प्यार,मिट्टी का हूँ, छोटा दीपक,ज्योति चाहती, दुनिया जब तक,मेरी, जल-जल कर मैं उसको देने को तैयार
मुझे न अपने से कुछ प्यारपर यदि मेरी लौ के द्वार,<br>मिट्टी का हूँ, छोटा दीपक,<br>ज्योति चाहती, दुनिया जब तककी आँखों को निद्रित,<br>मेरी, जल-जल कर मैं उसको देने को तैयार| <br><br>चकाचौध करते हों छिद्रितमुझे बुझा दे बुझ जाने से मुझे नहीं इंकार
पर यदि मेरी लौ के द्वार,<br>केवल इतना ले वह जानदुनिया की आँखों को निद्रित,<br>मिट्टी के दीपों के अंतरचकाचौध करते हों छिद्रित<br>मुझमें दिया प्रकृति ने है करमुझे बुझा दे बुझ जाने से मुझे नहीं इंकार| <br><br>मैं सजीव दीपक हूँ मुझ में भरा हुआ है मान
केवल इतना ले वह जान<br>मिट्टी के दीपों के अंतर<br>मुझमें दिया प्रकृति ने है कर<br>मैं सजीव दीपक हूँ मुझ में भरा हुआ है मान| <br><br> पहले कर ले खूब विचार<br>तब वह मुझ पर हाथ बढ़ाए<br>कहीं न पीछे से पछताए<br>बुझा मुझे फिर जला सकेगी नहीं दूसरी बार| <br><br/poem>