1,211 bytes added,
03:21, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ग़र्क कर दो कि तुम चबा लो मुझे
मैं तो कहता रहा हूँ खा लो मुझे!
अहले-दुनिया के दर्दो-ग़म आओ
और चिलमन में ठूस डालो मुझे!
गर नहीं है तो फिर न देखो ख़्वाब
हैजो कूवत तो आके पा लो मुझे!
या तो उनको ही अक़्ल बख़्शो या
आके फ़ज़ले-ख़ुदा उठा लो मुझे!
इसका मतलब कि फिर गिरा दोगे
ऐसे आकर के मत सँभालो मुझे!
मुझको पीकर ''अहा'' कहो, इसके
पहले, थोड़ा-बहुत हिला लो मुझे!
दिख रहे हैं ख़ुशी के बदतर लोग
ग़म के अच्छों कहीं छुपा लो मुझे!
</poem>