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<poem>

वादा तो कर रहे हो निभाओगे कब इसे
यानी के तोड़-ताड़ के जाओगे कब इसे?

रहता है आजकल तो बड़े मौज में ये दिल
बोलो के बोल भी दो सताओगे कब इसे?

हँसती है इक उम्मीद उछलती है रात-दिन
गोया,पटक-पटक के रुलाओगे कब इसे?

रोती ही जा रही है ख़लिश बैठ कर के दूर
मुझको रुला-रुला के हँसाओगे कब इसे?

देखो के मुँह फुला के कशमकश ख़मोश है
अरमाने-दिल जला के मनाओगे कब इसे?
</poem>