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13:26, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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|संग्रह=
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<poem>
यही उनवान लेकर चल रहे हैं
'गली-शमशान लेकर चल रहे हैं'
कहीं जा-कर डुबोना है ख़बर है
मगर अरमान लेकर चल रहे हैं
सभी का वां पहुँचना है मुअय्यन
तो सब सामान लेकर चल रहे हैं
दिखावा है हुनर से बीस,था भी,
सो सब दीवान लेकर चल रहे हैं
कई बगदाद ले कर जा चुके हैं
तो कुछ 'ईरान' लेकर चल रहे हैं
वही 'कश्मीर-सा' है हाल अपना
'क़फ़न पे जान लेकर चल रहे हैं'
'उन्हीं ने बेच खाया है' जो मुँह में
'अदब' का पान लेकर चल रहे हैं
</poem>